Most Trusted Portal for Booking Puja Online Durga Puja नवरात्र का छठा दिन – माता कात्यायनी की कथा, पूजा विधि, मंत्र तथा आरती

नवरात्र का छठा दिन – माता कात्यायनी की कथा, पूजा विधि, मंत्र तथा आरती

माता कात्यायनी की कथा, पूजा विधि

पूर्व काल से नवरात्र के छठवें दिन कष्ट निवारिणी माता कात्यायनी की पूजा का विधान है। स्वर्ण समान चमकीला माँ के इस स्वरूप को देखने मात्र से मनुष्यों के सभी पापों का नाश हो जाता है। माता कात्यायनी के इस स्वरूप की उपासना करने से भक्तजन शारीरिक रोगों से मुक्त हो जाते हैं। उनका गृहस्थ जीवन भी सुखमय रहता है।

धर्म पुराणों के अनुसार माँ कात्यायनी का ध्यान करने से राहु दोष से छुटकारा मिल जाता है। सिंह सवारिणी माँ चार भुजा धारी हैं। बाएं भुजा में देवी तलवार और कमल पुष्प धारण की हुई है व दाहिनी भुजा वरमुद्रा और अभय मुद्रा में रहता है।

नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी पूजा का महत्व

हिन्दू धर्म के अनुसार छठवें नवरात्र को देवी कात्यायनी की पूजा का अत्यधिक महत्व है। माता शक्ति, ज्ञान, साहस की प्रतीक हैं और जो उनकी पूजा करते हैं वे सर्व गुणों से संपन्न होते हैं। कात्यायनी पूजन से नकारात्मकता और अहंकार का विनाश होता है, और माँ अपने भक्तों को शुद्ध और स्वच्छ हृदय से वरदान देती है। ऐसी मान्यता है कि माता कात्यायनी की एकाग्र मन से पूजा अर्चना करने से विवाह में उत्पन्न हो रही बाधा भी दूर हो जाती है।

सम्बंधित लेख : नवरात्र का पाँचवा दिन – स्कंदमाता की कथा, पूजा विधि तथा मंत्र

माँ कात्यायनी की कथा

प्राचीन किंवदंतियों के अनुसार, माँ कात्यायनी का जन्म कात्या वंश में ऋषि कात्यायन के घर हुआ था। इसलिए देवी माँ का नाम कात्यायनी पड़ा। ऋषि कात्यायन मां दुर्गा के अनन्य उपासक थे। वो माता को पुत्री रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या करने लगे। देवी माँ ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण ही माता को कात्यायनी कहा जाने लगा।

कहानी यह है कि माता पार्वती ने महिषासुर राक्षस का वध करने के लिए देवी कात्यायनी का रूप धारण किया था। वामन पुराण के अनुसार, जब देवता महिषासुर द्वारा किए गए अत्याचारों से अत्यधिक निराश हो गए, तो उन्होंने अपनी समस्या हल करने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे। अन्य देवताओं की भांति त्रिदेव इतना क्रोधित हुए कि उनके क्रोधाग्नि से देवी कात्यायनी का जन्म हुआ।

देवी ने जन्म लिया, तो देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र देवी को सौंप दियें। देवताओं के शस्त्रों से सुशोभित होकर माता महिषासुर का वध करने के लिए आगे बढ़ीं। हालाँकि, दुष्ट महिषासुर देवी की सुंदरता को देखकर मोहित हो गया और विवाह के लिए देवी का हाथ मांगा।  देवी कात्यायनी ने उसे द्वंद्व युद्ध के लिए चुनौती दिया, और कहा कि अगर वह हार गई, तो वह उससे शादी कर लेंगी। नीच महिषासुर और माता के बीच भीषण युद्ध हुआ। देवी ने द्वंद्व जीत लिया और महिषासुर का अंत कर दिया। महिषासुर का नाश करने के कारण ही उन्हें महिषासुरमर्दिन भी कहा जाता है।

मां कात्यायनी को प्रसन्न करना है बहुत आसान, पढ़ें पूजा की सरल विधि

जानिए कैसे करें मां कात्यायिनी की पूजा?

  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में सो कर उठें।
  • स्नान करने के बाद नारंगी वस्त्र धारण कर लें, ततपश्चात सूर्य देव को अर्घ दें।
  • पूजा स्थान को  गंगाजल से शुद्ध करें। और कलश की स्थापना करें।
  • मां को वस्त्र अर्पित करें।
  • माता कुमकुम लगाने से प्रसन्न होती हैं, अतः इन्हें कुमकुम लगाएं।
  • माता को पीले फूल और नैवेद्य अर्पित करें।
  • माता कात्यायनी को केले का प्रसाद चढ़ाए
  • देवी माँ को शहद का भोग अवश्य लगाएं।
  • मां की आरती करें और प्रसाद बांटे।

सम्बंधित लेख : नवरात्रि के 9 दिन का भोग 2021, किस दिन क्या भोग लगाएं

 

माँ कात्यायनी की तांत्रिक बीज मंत्र

।। ॐ ह्रीं क्लीं कात्यायने नमः ।।

देवी कात्यायनी प्रार्थना मंत्र

चन्द्रहासोच्जवलकरा शार्दूलवर वाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

 

देवी कात्यायनी स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 

मां कात्यायनी का ध्यान मंत्र

ध्यान वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥

स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥

पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रसन्नवदना प†वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।

कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

मां कात्यायनी स्तोत्र पाठ

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोच्जवलां।

स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥

पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।

सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

परमांवदमयी देवि परब्रह्मा परमात्मा।

परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

 

मां कात्यायनी कवच

कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।

ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥

कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥

 

मां कात्यायनी की आरती

जय-जय अम्बे जय कात्यायनी

जय जगमाता जग की महारानी

वैद्यनाथ स्थान तुम्हारा

वहा वरदाती नाम पुकारा

कई नाम है कई धाम है

यह स्थान भी तो सुखधाम है

हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी

कही योगेश्वरी महिमा न्यारी

हर जगह उत्सव होते रहते

हर मंदिर में भगत हैं कहते

कात्यायनी रक्षक काया की

ग्रंथि काटे मोह माया की

झूठे मोह से छुडाने वाली

अपना नाम जपाने वाली

बृहस्पतिवार को पूजा करिए

ध्यान कात्यायनी का धरिए

हर संकट को दूर करेगी

भंडारे भरपूर करेगी

जो भी मां को ‘चमन’ पुकारे

कात्यायनी सब कष्ट निवारे।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Post

jai jai bharavi

जय जय भैरवि || मैथिली देवी गीत ||जय जय भैरवि || मैथिली देवी गीत ||

माँ भै‍रवि ‘भैरवी’ का अर्थ है जो आतंक का अवतार है या जो अपने दुश्मनों में आतंक पैदा करती है। वह देवी दुर्गा की पांचवीं अभिव्यक्ति हैं जो जीवन में

नवरात्र का पहला दिन- देवी शैलपुत्री

नवरात्र का पहला दिन- देवी शैलपुत्री की कथा, पूजा विधि तथा स्तोत्र मंत्रनवरात्र का पहला दिन- देवी शैलपुत्री की कथा, पूजा विधि तथा स्तोत्र मंत्र

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार,नवरात्रि की शुरुआत देवी शैलपुत्री की पूजा आराधना से होती है। माता शैलपुत्री को हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि माता शैलपुत्री के भव्य

Durga Puja - Navratri

नवरात्री में कलश स्थापना कैसे करें, सरल और प्रामाणिक विधिनवरात्री में कलश स्थापना कैसे करें, सरल और प्रामाणिक विधि

कलश स्थापना या घटस्थापना नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। प्राचीन हिन्दू धर्म ग्रंथो में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। किसी भी कार्य का शुभारंभ कलश