कलश स्थापना या घटस्थापना नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। प्राचीन हिन्दू धर्म ग्रंथो में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। किसी भी कार्य का शुभारंभ कलश की पूजा अर्चना के साथ की जाती है। मान्यता है कि कलश में समस्त देवी देवता शक्ति के रूप में वास करते हैं। कलश स्थापना नौ दिनों के नवरात्र के शुरुआत में होता है। कलश की स्थापना देवी शक्ति के आह्वान के लिए की जाती है।
कलश स्थापना के सरल एवं प्रामाणिक विधि
- सर्वप्रथम पूजा स्थान की शुद्धि गंगाजल या गौमूत्र से करें।
- देवी दुर्गा का आह्वान करने के लिए कलश तैयार कीजिए।
- एक मिट्टी, चांदी, पीतल का बर्तन लें और उस पर मिट्टी की एक परत चढ़ाएं, फिर जौ के बीज फैलाएं।
- मिट्टी की दूसरी परत डालें और उसपर थोड़ा पानी छिड़कें।
- कलश के गले में एक पवित्र धागा मौली बांधें और उसमें पवित्र जल भर दें।
- जल भरने के उपरांत पंच पल्लव कलश में रखें।
- जल में सुपारी, गंध, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्के डालें।
- एक नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर,धागे से बांधकर कलश के ऊपर रख दें।
कलश अब देवी दुर्गा का आह्वान करने के लिए तैयार है। देवी दुर्गा का आह्वान करें और उनसे अनुरोध करें कि वे आपकी प्रार्थना स्वीकार करें और नवरात्रि के नौ दिनों के लिए कलश में निवास करें।
कलश को दीया, धूप दिखाएं, सुगंधित फूल चढ़ाएं और फिर कलश पूजा के पहले चरण को समाप्त करने के लिए फल और मिठाई का भोग अर्पित करें। इसके बाद दुर्गा पूजा के मंत्रों का पाठ करें और उसके बाद मां दुर्गा की आरती करें।
हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि जब भी पूजा शुरू करें तो सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। इस नवरात्रि में भी सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है और बाधा मुक्त पूजा के लिए उनका आशीर्वाद मांगा जाता है।
दुर्गा सप्तशी का पाठ करें और उत्सव के नौ दिनों के भीतर इसे पूरा करें।
प्रसाद के लिए देवी को लौंग और इलायची का भोग लगाएं। इसके अलावा, देवी को लाल दुपट्टा, काजल, बिंदी, सिंदूर, दर्पण, अंगूठियां, कंघी, लिपस्टिक, चूड़ियां और अन्य सौंदर्य वस्तुएं चढ़ाएं। प्रतिदिन आरती गाकर और प्रसाद बांटकर पूजा समाप्त करें।
नवरात्रि के 9 दिन का भोग 2022 , किस दिन क्या भोग लगाएं
दुर्गा मां की आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
नवरात्र का पहला दिन- देवी शैलपुत्री की कथा, पूजा विधि तथा स्तोत्र मंत्र
नवरात्र का दूसरा दिन – माता ब्रह्मचारिणी कथा, पूजा विधि तथा मंत्र
नवरात्र का तीसरा दिन – माता चंद्रघंटा कथा, पूजा विधि तथा मंत्र
नवरात्र का चौथा दिन – कूष्माण्डा देवी की कथा, पूजा विधि तथा मंत्र
नवरात्र का पाँचवा दिन – स्कंदमाता की कथा, पूजा विधि तथा मंत्र
नवरात्र का छठा दिन – माता कात्यायनी की कथा, पूजा विधि, मंत्र तथा आरती