गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) 2022 : पौराणिक कथा, पूजा विधि, और उद्यापन
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गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) क्या है?
भारत एक ऐसा देश हैं जहाँ विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग एक साथ रहते हैं। भारत में अधिकतर सनातन धर्म के अनुयाई रहते हैं और सनातन धर्म एक ऐसा धर्म है जिसमें सभी त्योहारों का अपना एक अलग महत्व है। सनातन धर्म में भगवान से जुड़े हुए भी काफी सारे त्यौहार मनाए जाते हैं और उन्हीं में से एक गणेश चतुर्थी है।
गणेश चतुर्थी पूरे देश में मनाए जाने वाले सबसे बड़े धार्मिक त्योहारों में से एक है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे कुछ राज्यों में गणेश चतुर्थी को काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी वह दिन है जिस दिन भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था और उन्हीं के जन्म उत्सव के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता है।
हर त्यौहार की तरह सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी के भी अपने कुछ अलग महत्व है। अगर आप गणेश चतुर्थी के बारे में जानना चाहते हो तो यह लेख पूरा पढ़ें क्योंकि इसमें हम आपको ‘गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा, श्री गणेश जी की संपूर्ण पूजा विधि और उद्यापन‘ के बारे में विस्तार से बताएंगे और इससे सम्बन्धित कई अन्य विशेष जानकारी भी देंगे।
गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) क्यों मनाई जाती हैं?
अगर फिर भी सरल भाषा में गणेश चतुर्थी को समझा जाए तो यह वह दिन है जिस दिन भगवान श्री गणेश (Lord Ganesh) का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी भारत में सनातन धर्म के अनुयायियों के द्वारा मनाए जाने वाले सबसे बड़े त्यौहारों में से एक है। गणेश चतुर्थी का त्योहार एक नहीं बल्कि 10 दिन तक मनाया जाता है। इस त्यौहार के समय भगवान श्री गणेश की प्रतिमा घर में लाई जाती है और उसे त्यौहार के अंतिम दिन विसर्जित किया जाता है।
श्री गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन हुआ था। इसलिये इनके जन्म दिवस को व्रत कर श्री गणेश जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है। जिस वर्ष में यह व्रत रविवार और मंगलवार के दिन का होता है। उस वर्ष में इस व्रत को महाचतुर्थी व्रत कहा जाता है।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था भगवान श्री गणेश जी का जन्म
भगवान श्री गणेश हिंदू धर्म के देवताओं में से एक है जिन्हें सबसे अधिक पूजा जाता है। भगवान गणेश माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। मान्यता है कि भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। कहा जाता है कि भगवान गणेश का जन्म मध्याह्न काल के दौरान हुआ था और यही कारण है कि मध्याह्न का समय गणेश पूजा के लिए यह सबसे सटीक समय माना जाता है।
देवी पार्वती के उतारे गए हल्दी के उबटन से उत्पन्न हुए थे भगवान गणेश
हिंदू धर्म की पौराणिक कथा के अनुसार मान्यता है कि भगवान श्री गणेश का जन्म पार्वती के द्वारा उतारे गए हल्दी के उबटन से हुआ था। एक बार माता पार्वती अपने शरीर पर हल्दी का उबटन लगाई हुई थीं। जब उन्होंने अपने शरीर से हल्दी का उबटन हटाया तो उससे छोटा सा एक पुतला बना दिया और अपने तपोबल से उसे पुतले में प्राण डाल दिया। इस तरह बाल गणेश का जन्म हुआ।
अपनी सुरक्षा के लिए माता पार्वती ने भगवान गणेश की उत्पत्ति की थी। भगवान गणेश की उत्पत्ति के बाद माता पार्वती जब नहाने गई तब अनजान गणेश ने उनके पिता भगवान शिव को रोकने की कोशिश की जिससे क्रोध में आकर भगवान शिव ने उनका सिर काट दिया।
गणेश चतुर्थी का व्रत कैसे करना चाहिए?
गणेश चतुर्थी के व्रत को करने की विधि भी भगवान गणेश के लिए किए जाने वाले अन्य व्रतों के समान ही है। गणेश चतुर्थी के दिन और उपवासक को सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान सहित अन्य नित्य कार्य करके पूरे घर को गंगाजल के द्वारा शुद्ध कर देना चाहिए।
इस दिन सफेद तिलों को जल में मिलाकर स्नान करना बेहतर माना जाता है। इसके बाद प्रातः सुबह गणेश जी की पूजा की जाती है और दिन में ‘बीजमंत्र ऊँ गं गणपतये नम:‘ का जाप किया जाता हैं।
उसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को धूप, दूर्वा, दीप, पुष्प, नैवेद्य और जल के द्वारा पूजा जाता है और उन्हें लाल रंग के वस्त्र धारण कराए जाते हैं। इस दिन लाल वस्त्र दान करना भी शुभ माना जाता है।
गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) की पूजाविधि
गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने की विधि काफी आसान है। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने वाले लोग हल्के लाल या पीले रंग के कपड़े पहनते हैं। भगवान के चित्र और प्रतिमा को लाल रंग के कपड़े के ऊपर रखा जाता है। उनका मुँह पूर्व या उत्तर दिशा में रहना चाहिए।
पूजा के लिए प्रतिमा या चित्र के सामने दिया जलाया जाता है और उन्हें लाल रंग के गुलाब के फूलों से सजाया जाता है। पूजा में भगवान गणेश को तिल के लड्डू, गुड़ रोली, मोली, चावल, तांबे के लोटे में जल, धूप, और प्रसाद के तौर पर केला और मोदक का भोग लगाया जाता हैं और साथ ही उनके मन्त्रो का जाप किया जाता हैं।
प्रात: श्री गणेश की पूजा करने के बाद, दोपहर में गणेश के बीजमंत्र ऊँ गं गणपतये नम: का जाप करना चाहिए। पूजा में घी से बने 21 लड्डूओं से पूजा करनी चाहिए। इसमें से दस अपने पास रख कर, शेष सामग्री और गणेश मूर्ति किसी ब्राह्मण को दान-दक्षिणा सहित दान कर देनी चाहिए।
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श्री गणेश चतुर्थी व्रत कथा – गणेश चतुर्थी संबंधित पौराणिक कथाएं
सनातन धर्म के बारे में एक खास बात यह है कि इससे संबंधित जितने भी त्यौहार मनाए जाते हैं उन सभी के पीछे कोई ना कोई पौराणिक कथा जरूर होती है।
गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथाएं कुछ इस प्रकार हैं:
श्री गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है। कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थें। वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड खेलने को कहा।भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये। परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा?
इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बना। उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी।और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है। परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता।
यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया। खेल तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गई।खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया।
यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई। उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व किचड में पडे रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऎसा नहीं किया। बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगें, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई।
एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं। नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालुम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। गणेश जी प्रसन्न हो गए और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा। बालक ने कहा की हे विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों। बालक को यह वरदान दे, श्री गणेश अन्तर्धान हो गए।
बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। और अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई। उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गई। देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया।इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी। वह समाप्त हो गई।
यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया। व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है।
गणेश चतुर्थी उद्यापन कैसे करते हैं?
गणेश चतुर्थी के उद्यापन के लिए प्रातः सुबह उठकर जल्दी स्नान करते हैं और एक चौकी पर भगवान की प्रतिमा के साथ कलश की स्थापना भी करते हैं। कलश के ऊपर एक स्वास्तिक बनाया जाता है जिसके ऊपर तिलकुट और एक सिक्का रखा जाता है। इसके बाद कलश पर 13 बिंदीयाँ लगाई जाती है और भगवान की विधिवत पूजा की जाती है।
इसके बाद भगवान को दुर्वा चढ़ाया जाता है और रोली का उपयोग करते हुए उनका तिलक किया जाता है, साथ ही उन्हें फल–फूल आदि अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद कथाएं पढ़ी जाती है और धूप – दीप व गीत के माध्यम से आरती की जाती है। आरती के बाद भगवान गणेश को लड्डू और मोदक का भोग चढ़ाया जाता है।
इसके बाद पूरा दिन बैठ करके शाम को व्रत का पारण किया जाता है। व्रत का पारण तिलकुट से ही करना चाहिए और कलश के तिलकुट को किसी पंडित को पैसों सहित दान करना चाहिए।
इस तरह से हुए थे भगवान गणेश एक बार फिर से जीवित
जब माता पार्वती को इस बात का पता चला कि भगवान शिव ने उनके पुत्र गणेश का सिर काट दिया है तो वह भगवान शिव से रुष्ट हो गई, जिसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से गणेश को जीवन दान देने का वादा किया। वादे के अनुसार भगवान शिव ने गणेश जी के शरीर पर हाथी का सिर लगाया और इस तरह से भगवान गणेश एक बार फिर से जीवित हो गए।
साल 2021 में गणेश चतुर्थी कब हैं?
सनातन धर्म से संबंध रखने वाले कई अन्य त्योहारों की तरह गणेश चतुर्थी का त्योहार भी पंचांग के अनुसार मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार हिंदी पंचांग के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस बार 31 अगस्त 2022 को बुधवार के दिन गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी।
महाशय इस ब्लॉग के माध्यम से आपने गणेश चतुर्थी के बारे रोचक तथ्य बताएं l मेरी वैदिक धर्म में बड़ी आस्था है l कृपया सनातन धर्म से जुड़ी रोचक कहानियां और तथ्य यूँ हीं उपलब्ध करते रहें l
जरूर , बहुत बहुत धन्यवाद